आईआईटी रुड़की का बड़ा शोध : गंगा का ग्रीष्मकालीन प्रवाह मुख्य रूप से भूजल से आता है, ग्लेशियरों से नहीं

दिनांक : 2025-08-01 16:39:00
- गंगा के मुख्य प्रवाह में गर्मियों में हिमनदों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता : आईआईटी रुड़की
- एक अध्ययन में, आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने गंगा नदी के ग्रीष्मकालीन प्रवाह को लेकर एक नया दृष्टिकोण किया पेश
- गंगा के मध्य भाग में भूजल से आने वाला पानी नदी के जल स्तर को 120% तक बढ़ा देता है : आईआईटी रुड़की
- अध्ययन गंगा के जल स्रोतों को समझने में एक महत्वपूर्ण बदलाव दिखाता है
- गंगा का भविष्य सिर्फ ग्लेशियरों पर नहीं, बल्कि हमारे जल प्रबंधन पर निर्भर करता है
रुड़की : हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में, आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने गंगा नदी के ग्रीष्मकालीन प्रवाह को लेकर एक नया दृष्टिकोण पेश किया है। शोधकर्ताओं ने गंगा और उसकी सहायक नदियों का विस्तार से विश्लेषण किया है और यह बताया है कि गंगा का ग्रीष्मकालीन जल प्रवाह मुख्य रूप से भूजल से आता है, न कि ग्लेशियरों के पिघलने से, जैसा पहले माना जाता था। यह अध्ययन गंगा के जल स्रोतों को समझने में एक महत्वपूर्ण बदलाव दिखाता है। शोध के अनुसार, गंगा नदी का पानी मुख्य रूप से भूजल से आता है, जो नदी के मध्य भाग में उसके जल स्तर को 120% तक बढ़ा देता है। खासकर ग्रीष्मकाल में, नदी का 58% पानी वाष्पीकरण में नष्ट हो जाता है, जो जल बजट का एक अनदेखा और चिंताजनक पहलू है।
इस अध्ययन ने यह भी स्पष्ट किया कि गंगा के ग्रीष्मकालीन प्रवाह में हिमालयी ग्लेशियरों का कोई खास योगदान नहीं है। पटना तक गंगा का प्रवाह मुख्य रूप से भूजल से प्राप्त होता है, और हिमनदों से प्राप्त पानी इस प्रवाह को प्रभावित नहीं करता। गंगा के मुख्य प्रवाह में गर्मियों में अन्य सहायक नदियाँ जैसे घाघरा और गंडक योगदान देती हैं। यह शोध जल प्रबंधन और नदी पुनरुद्धार के लिए महत्वपूर्ण संकेत प्रदान करता है। इसने नमामि गंगे, अटल भूजल योजना और जल शक्ति अभियान जैसी सरकारी योजनाओं की महत्ता को भी सिद्ध किया है, जिनका उद्देश्य नदियों की सफाई और भूजल पुनर्भरण है।
आईआईटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के प्रमुख और इस अध्ययन के लेखक प्रो. अभयानंद सिंह मौर्य ने कहा, – हमारा शोध यह बताता है कि गंगा का जल स्तर भूजल के गिरने से नहीं, बल्कि अत्यधिक जल उपयोग, जलमार्ग में बदलाव और सहायक नदियों की उपेक्षा से घट रहा है। आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. के.के. पंत ने कहा, “यह अध्ययन गंगा के ग्रीष्मकालीन प्रवाह को समझने में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह न केवल गंगा, बल्कि सभी प्रमुख भारतीय नदियों के लिए एक स्थिर नदी पुनरुद्धार की रणनीति हो सकती है।”
अंत में, यह शोध यह संदेश देता है कि अगर भारत को गंगा को स्थायी बनाना है तो उसे अपने जलभृतों की सुरक्षा और पुनर्भरण पर ध्यान देना होगा, मुख्य नदी चैनल में पर्याप्त जल छोड़ना होगा और सहायक नदियों को पुनर्जीवित करना होगा। गंगा का भविष्य केवल ग्लेशियरों पर नहीं, बल्कि जल प्रबंधन पर निर्भर करता है।